चुपचाप चलने वाला ऐसा आदमी…उत्तराखंड की पहाड़ियों मे ही पैदा होता है.”

साल 1945… उत्तराखंड की पहाड़ियों में एक छोटे से गाँव में एक बच्चा पैदा होता है — नाम रखा जाता है अजीत।

कौन जानता था कि ये बालक एक दिन उन लड़ाइयों का हिस्सा बनेगा, जिनके बारे में इतिहास की किताबें भी नहीं लिखेंगी।

वो लड़ाइयाँ जो संसद में नहीं, बल्कि परछाइयों में लड़ी जाती हैं। नकाब में। झूठी पहचान में। मौत के साए में।

उसकी आँखों में एक अलग चमक थी —

न डरने वाली,

न रुकने वाली।

22 की उम्र में UPSC निकाली। IPS बना। लेकिन ये उसकी मंज़िल नहीं थी — ये तो सिर्फ रास्ता था।

1971, केरल।

दंगे फूट चुके थे। पुलिस थर-थर काँप रही थी।

और तभी एक दुबला-पतला नौजवान, बिना बंदूक, अकेला, दंगाइयों की भीड़ में घुस जाता है।

बोलता है, समझाता है, डर नहीं दिखाता — और एक हफ्ते में शांति लौट आती है।

लोग पूछते हैं — “ये कौन है?”

किसी ने धीरे से कहा, “नाम याद रखना — अजीत डोभाल।”

मिज़ोरम।

जंगलों में विद्रोही छिपे थे। लालडेंगा और उसका संगठन, भारत के खिलाफ।

डोभाल वहाँ गया — लेकिन किसी अधिकारी की तरह नहीं।

वो उनके साथ रहने लगा। उनके साथ खाना खाया, उनके जैसे बोला।

धीरे-धीरे कमांडरों का विश्वास जीत लिया।

एक दिन लालडेंगा चीख पड़ा —

“उसने मेरे आदमी चुरा लिए!”

कभी सिक्किम में, कभी पाकिस्तान में।

सिक्किम को भारत में मिलाना था — तो डोभाल भेजे गए।

न टैंक, न बम।

केवल एक आदमी — और उसका दिमाग।

पाकिस्तान के काहूटा में — जहाँ परमाणु हथियार बन रहे थे — डोभाल भिखारी बनकर घूमे।

नाई की दुकानों से बाल उठाए, दो बार मौत से बचे — और भारत तक वो जानकारी पहुँची, जो किसी सैटेलाइट से नहीं मिलती।

1988, अमृतसर। स्वर्ण मंदिर।

खालिस्तानी आतंकवादी अंदर छिपे थे।

डोभाल, एक मुसलमान बनकर अंदर दाखिल हुए। उर्दू बोली। दोस्ती की। भरोसा जीता।

और फिर सर्जिकल ऑपरेशन से पहले पूरी जानकारी भारत को दे दी।

कई लोगों की जानें बच गईं — और किसी को पता तक नहीं चला कि अंदर एक “डोभाल” बैठा था।

1999, कंधार।

एक हाइजैक्ड प्लेन। 180 भारतीय बंधक।

जब देश थम गया था, तब डोभाल एयरपोर्ट पर खड़ा था — सौदेबाज़ी कर रहा था।

3 आतंकवादी छोड़ने पड़े — लेकिन हर यात्री ज़िंदा लौट आया।

सेवानिवृत्ति के बाद?

लोग आराम करते हैं।

पर डोभाल ने “विवेकानंद फाउंडेशन” बनाई।

युवाओं को जोड़ना शुरू किया।

रिपोर्ट्स लिखीं। काले धन पर रिसर्च।

देश की नीतियों पर दबाव बनाया।

2014।

नरेंद्र मोदी सत्ता में आए — और उन्होंने एक फोन किया:

“डोभाल जी, अब आपको NSA बनना होगा।”

अब वो सिर्फ एक जासूस नहीं थे —

अब वो भारत की रणनीति थे।

इसके बाद?

म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक

उरी और पुलवामा का जवाब — बालाकोट एयर स्ट्राइक

अनुच्छेद 370 हटाना

इराक से भारतीय नर्सों की वापसी

हर बड़ी घटना में एक साया था —

एक नाम था, जो कभी कैमरे में नहीं आया — अजीत डोभाल।

आज भी…

वो लड़ते हैं —

सिर्फ पाकिस्तान या आतंक से नहीं,

बल्कि उन आरोपों से भी जो उनके परिवार पर लगाए गए।

उनका बेटा बदनाम हुआ — डोभाल ने मुकदमा किया, और कोर्ट में जीत हासिल की।

अजीत डोभाल।

वो चुप हैं, लेकिन कमजोर नहीं।

वो दिखते नहीं, पर हर जगह मौजूद हैं।

वो नारे नहीं लगाते — वो परिणाम लाते हैं।

जब भारत सोता है —

डोभाल जागते हैं।

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