दिल्ली के लाल किला के पास हुए ब्लास्ट में 12 लोगों की जान चली गई. इसमें मरने वाले ज्यादातर लोग बेहद आम हैं, जो अपनी मेहनत और थोड़ी कमाई के भरोसे अपने बच्चों और परिवार को बेहतर करने का सपना लेकर अपने गांव से दूर यहां आए थे. कोई रिक्शा चलाता था, तो कोई प्रिंटिंग प्रेस में काम करके अपना गुजर-बसर करता था.

दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके की वजह से न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश के लोगों को जहनी तौर पर धक्का पहुंचाया है. जिन लोगों ने अपनों को खोया है उनके सपने चूर हो गए हैं, क्योंकि वो अब कभी भी पूरे नहीं हो सकेंगे. उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती और देवरिया, मेरठ, अमरोहा और शामली के गांवों और कस्बों के लोग इस ब्लास्ट की सूली चढ़ गए. ये बेकसूर और आम लोग थे. न ही करोड़ों की दौलत थी और न ही को राजनीतिक रसूख.. इनमें से कईयों की जिंदगी हर दिन के गुजारे पर टिकी हुई थी.

कोई टैक्सी और ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का गुजारा करता था तो कोई ब्यूटी प्रोडक्ट की दुकान चलाकर तो कोई दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) में बस कंडक्टर की नौकरी करके अपने परिवार का गुजारा कर रहा था. अपने घर गांव से दूर दिल्ली एक बेहतर जिंदगी का सपना लेकर पहुंचे थे, मगर जो हुआ वो शायद ही कभी भूला जा सके.

प्रिंटिंग प्रेस में काम करते थे दिनेश

इस हमले का शिकार हुए लोगों में श्रावस्ती जिले के गणेशपुर गांव के रहने वाले दिनेश मिश्रा (32) भी शामिल थे. वह अपनी पत्नी और तीन छोटे बच्चों के साथ दिल्ली में रहते थे. चावड़ी बाजार के एक प्रिंटिंग प्रेस में काम किया करते थे. बेटे की मौत की खबर सुनकर बोझिल आंखें लिये उनके पिता भुरई मिश्रा ने बेटे के साथ बिताए पल को याद किया और बोले कि इस ब्लास्ट से ठीक 10 दिन पहले दीपावली मनाकर वो वापस दिल्ली लौटा था. पिता ने कहा कि मेरा बच्चा बहुत मेहनती था. वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहता था, हमें अब भी यकीन नहीं हो रहा कि वह चला गया.

मेरठ के लोहिया नगर के रहने वाले 32 साल के मोहसिन भी इसी हमले में जान गंवाने वाले लोगों में से एक हैं. हालांकि उसकी मौत परिवार में दो फाड़ भी कर गयी. दिल्ली में पिछले दो साल से ईरिक्शा चला रहा मोहसिन लाल किले के लिए सवारियां ले जा रहा था तभी वह विस्फोट की चपेट में आ गया. उसके शव को अंत्येष्टि के लिए उसके घर लाया गया तो उसे दफनाने के लिए उसकी पत्नी और पिता एवं भाइयों के बीच विवाद हो गया.

नौमान, मोहसिन और लोकेश की है ये कहानी

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, जब मोहसिन का पार्थिव शरीर उसके घर लाया गया, तो उसकी पत्नी सुल्ताना और उसके पिता के बीच मतभेद हो गए. सुल्ताना चाहती थी कि क्योंकि उसका परिवार दो साल से दिल्ली में ही रह रहा था और उसके बच्चे भी दिल्ली में ही पढ़ रहे हैं तो मोहसिन को दिल्ली में ही दफनाया जाए. मगर मोहसिन के पिता और भाइयों का कहना था कि मेरठ मोहसिन की जन्मभूमि है, इसलिए उसे यहीं पर दफन किया जाए. विवाद बढ़ने पर पुलिस ने हस्तक्षेप किया और काफी बहस-मुबाहिसे के बाद सुल्ताना अपने शौहर के शव को लेकर दिल्ली रवाना हो गयी.

वहीं शामली के 18 साल के नौमान अंसारी अपनी दुकान के लिए ब्यूटी प्रोडक्ट्स का सामान खरीदने दिल्ली गया था तभी विस्फोट की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई. अंसारी के चाचा फुरकान ने बताया कि नौमान की मौके पर ही मौत हो गयी. उसका चचेरा भाई अमन घायल हो गया और उसका दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में इलाज किया जा रहा है.

दिल्ली की घटना के अन्य पीड़ितों में अमरोहा जिले के 34 साल के डीटीसी बस कंडक्टर अशोक कुमार भी शामिल थे जो नौकरी करके अपने बुज़ुर्ग माता-पिता और दो छोटे बच्चों का पालन-पोषण कर रहे थे. दिल्ली विस्फोट मामले में अमरोहा जिले के हसनपुर के रहने वाले 58 साल के खाद व्यापारी लोकेश कुमार अग्रवाल की भी मौत हो गई. वह सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती अपने एक रिश्तेदार से मिलने दिल्ली गए थे

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version