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    790KM दूर और 23 दिन का ऑपरेशन… श्रीनगर में चिपके एक पोस्टर ने कैसे खोली ‘डॉक्टर्स ऑफ टेरर’ की क्राइम कुंडली

    ManishBy Manish12/11/2025No Comments6 Mins Read
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    श्रीनगर के नौगाम इलाके में 18 अक्टूबर की सुबह कई जगहों पर जैश-ए-मोहम्मद के धमकी भरे पोस्टर देखे गए. इन पोस्टर्स में सुरक्षाबलों को चेतावनी दी गई थी कि ‘जल्द ही उन्हें सबक सिखाया जाएगा.’ जम्मू कश्मीर के लिहाज से यह कोई नई बात नहीं थी लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इसे हल्के में नहीं लिया.

    दिल्ली के दिल यानी लाल किले के पास हुआ कार धमाका पूरे देश को हिला गया. इस धमाके में 12 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हुए. घटना के बाद राजधानी में दहशत फैल गई. चारों ओर सिर्फ एक ही सवाल था, आखिर यह हुआ कैसे? कौन था इसके पीछे? क्या यह कोई बड़ी आतंकी साजिश थी या किसी की घबराहट में हुआ हादसा?

    एक छोटा पोस्टर बना सुराग, जिसने बचा लिया देश

    इस पूरी कहानी की शुरुआत श्रीनगर के नौगाम इलाके से होती है. 18 अक्टूबर की सुबह, वहां कुछ लोगों ने दीवारों पर जैश-ए-मोहम्मद के धमकी भरे पोस्टर देखे. इन पोस्टर्स में सुरक्षाबलों को चेतावनी दी गई थी कि ‘जल्द ही उन्हें सबक सिखाया जाएगा.’ जम्मू कश्मीर के लिहाज से यह कोई बड़ी बात नहीं लगती, लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इसे हल्के में नहीं लिया. एक छोटी-सी टीम ने जांच शुरू की और उसी जांच ने आगे चलकर 800 किलोमीटर दूर फरीदाबाद में छिपे एक पूरे आतंकवादी मॉड्यूल का पर्दाफाश कर दिया.

    पुलिस ने पोस्टर्स पर लिखे संदेशों और उनमें छिपे एन्क्रिप्टेड कोड्स का विश्लेषण किया. इन कोड्स को समझने में टीम को लगभग 21 दिन लग गए. लेकिन जब कोड्स डिकोड हुए, तो खुलासा हुआ कि विदेश में बैठे हैंडलर्स भारत में एक बड़े हमले की तैयारी कर रहे हैं.

    पोस्टर से शुरू जांच फरीदाबाद तक पहुंची

    जांच का दायरा धीरे-धीरे बढ़ने लगा. श्रीनगर से कुछ ओवरग्राउंड वर्कर्स को गिरफ्तार किया गया. उनसे पूछताछ में पता चला कि कई शिक्षित लोग, यहां तक कि डॉक्टर्स, मौलवी और छात्र भी जैश के संपर्क में हैं. पुलिस की टीम ने जब इन सुरागों को जोड़ना शुरू किया, तो उन्हें एक ‘डी गैंग’ के बारे में जानकारी मिली जिसे नई भाषा में ‘डॉक्टर्स गैंग’ का नाम दिया गया है, जो जैश-ए-मोहम्मद के लिए काम कर रहा था. इन लोगों के पास सिर्फ मेडिकल ज्ञान ही नहीं था, बल्कि वे विस्फोटकों को रासायनिक स्तर पर तैयार करने और छिपाने में माहिर थे. जांच ने श्रीनगर से निकलकर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और फिर हरियाणा के फरीदाबाद तक का रास्ता तय किया.

    2900 किलो विस्फोटक का खुलासा

    जब मुजम्मिल से पूछताछ हुई तो उसने जो बताया, उसने जांच एजेंसियों को हिला दिया. उसने कबूल किया कि उसने अपने फरीदाबाद वाले घर में करीब 2900 किलो विस्फोटक सामग्री छिपा रखी है. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तुरंत हरियाणा पुलिस से संपर्क किया और एक संयुक्त अभियान चलाया. कई घंटे की तलाशी के बाद, पुलिस ने उस घर से टन भर विस्फोटक, इलेक्ट्रॉनिक टाइमर और विस्फोट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन बरामद किए. यह वही वक्त था जब दिल्ली के पास हमले की तैयारियां अंतिम चरण में थीं. अगर यह विस्फोटक इस्तेमाल होता तो दिल्ली-एनसीआर को झकझोर देने वाला आतंकी हमला हो सकता था.

    ‘डॉक्टर्स ऑफ टेरर’ के नेटवर्क का खुलासा

    फरीदाबाद की छानबीन के बाद यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई सामान्य आतंकी मॉड्यूल नहीं था. यह एक डॉक्टर नेटवर्क था. एक ऐसे शिक्षित लोग का नेटवर्क जो आतंक के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल कर रहे थे.

    इस नेटवर्क में तीन बड़े नाम सामने आए –

    • डॉ. अदील अहमद राठर (सहारनपुर)
    • डॉ. मुजम्मिल शकील (फरीदाबाद)
    • डॉ. शाहीन शाहिद (दिल्ली)

    इन तीनों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन चौथा सदस्य डॉ. उमर महमूद भागने में कामयाब रहा. पुलिस को पता चला कि उमर ही वह व्यक्ति था जिसने दिल्ली में कार ब्लास्ट को अंजाम दिया. सूत्रों के अनुसार, उसने यह धमाका घबराहट में में किया, न कि किसी बड़े प्लान के तहत.

    पुलिस सूत्रों का कहना है कि जब फरीदाबाद मॉड्यूल का खुलासा हुआ, तो उमर को लगा कि पुलिस जल्द ही उसे पकड़ लेगी. घबराकर उसने लाल किला क्षेत्र में कार खड़ी की और उसमें लगे विस्फोटकों को जल्दबाजी में सक्रिय कर दिया. धमाका इतना जोरदार था कि आस-पास की दीवारें हिल गईं और 12 लोगों की मौत हो गई. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर विस्फोट पूरी तरह योजनाबद्ध तरीके से किया गया होता, तो नुकसान कई गुना ज्यादा हो सकता था. इससे यह संकेत मिलता है कि यह विस्फोट किसी पैनिक रिएक्शन का नतीजा था.

    जांच में यह भी सामने आया कि यह पूरा नेटवर्क विदेश में बैठे हैंडलर्स से संचालित हो रहा था. ये हैंडलर्स टेलीग्राम, सिग्नल और डार्क वेब जैसे एन्क्रिप्टेड चैनलों के जरिए डॉक्टरों और छात्रों को निर्देश दे रहे थे. हैंडलर्स उन्हें धार्मिक और सामाजिक सेवाओं के नाम पर काम करने को कहते, ताकि उनकी पहचान न खुले. लेकिन असल में, इन्हीं नेटवर्क्स के जरिए उन्हें फंडिंग, हथियार और विस्फोटक सामग्री मुहैया कराई जाती थी. जांच एजेंसियों को शक है कि इस मॉड्यूल के पीछे पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के स्लीपर सेल्स का हाथ था.

    कैसे एक जांच ने देश को बचा लिया

    अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने श्रीनगर के पोस्टर मामले को गंभीरता से न लिया होता, तो शायद आज देश किसी बहुत बड़े आतंकवादी हमले का गवाह बनता. उनकी तफ्तीश ने न केवल इस मॉड्यूल को खत्म किया बल्कि दिल्ली-एनसीआर को एक विनाशकारी हादसे से बचा लिया. जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, हमने जब पहली बार पोस्टर देखे थे, तब अंदाजा नहीं था कि यह जांच हमें देश के दूसरे छोर तक ले जाएगी. लेकिन जैसे-जैसे सुराग मिले, हमें समझ आया कि यह कोई सामान्य प्रोपेगेंडा नहीं, बल्कि एक बड़ा आतंकी नेटवर्क है.

    राष्ट्रीय जांच एजेंसी कई एंगल से कर रही जांच

    फिलहाल, जांच एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि लाल किला ब्लास्ट में मारा गया शख्स वास्तव में डॉ. उमर महमूद ही था या नहीं. इसकी पुष्टि के लिए उसकी मां का डीएनए सैंपल लिया गया है. साथ ही, उसके दो भाइयों को भी हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है ताकि यह पता चल सके कि क्या वे भी इस नेटवर्क का हिस्सा थे. अगर डीएनए मैच हो जाता है, तो यह साफ हो जाएगा कि लाल किला ब्लास्ट में जो कार सवार मरा था, वही आतंकी डॉक्टर उमर था. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अब इस केस को अपने हाथ में ले लिया है. जांच का फोकस अब सिर्फ यह नहीं है कि धमाका कैसे हुआ, बल्कि यह भी कि ‘डॉक्टर्स ऑफ टेरर’ जैसा नेटवर्क कैसे बना, कौन लोग इसमें शामिल थे और किन-किन शहरों में इनके स्लीपर सेल्स हैं. दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियां एनसीआर के अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और छात्र संगठनों पर भी नजर रख रही हैं.

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